Bseb class 10 physics notes in Hindi

Learn bseb  has brought you a summary of Physics for 10th class students.

  1. Light : Reflection and refraction
  2. Human Eye and Colorful World
  3. Electricity
  4. Magnetic Effect Of Electric Current
  5. Sources of Energy

All these chapters are scoring chapters Reflection and Refraction In this chapter you will be able to understand all the questions related to Reflection and Refraction of Light and different types of lenses and mirrors etc.

Adequate practice of Human Eye and Colorful and solving all questions from NCERT Science books is very important. Therefore, its summary will also be available and children score well in Electricity too,

and this is an entertaining chapter, understand this chapter well so that the magnetic effect of electric current will also be understood well, now you have been reading about Sources of Energy since childhood. But children should not ignore it in 10th that they have been studying since childhood, pay attention to this chapter also.

प्रकाश : परावर्तन और अपवर्तन 

( Light : Reflection and refraction )

  • प्रकाश ऊर्जा का एक रूप है जो वस्तुओं को देखने में हमारी सहायता करता है | यह एक भौतिक कारण  है जिससे हम किसी वस्तु को देख पाते है | 
  • परावर्तित किरणों वह होती है जो माध्यम में से गुजरकर वस्तु से टकराकर वापस माध्यम में आती है | 
  • आपतित किरण , परावर्तित किरण और आपतन बिंदु पर खींचा गया अभिलम्ब तीनों एक ही तल पर होते है तथा आपतन कोण एवं परावर्तन कोण आपस में बराबर होते है इसे परावर्तन का नियम कहते है | 
  • प्रकाश का परावर्तन दो प्रकार के होते है 
  1. नियमित परावर्तन  2 . अनियमित परावर्तन 
  • समतल दर्पण में बना किसी वस्तु का प्रतिबिंब काल्पनिक और सीधा होता है|  जिस दर्पण में प्रकाश का परावर्तन वक्र तल पर होता है उसे गोलीय दर्पण कहते है | 
  • किसी गोले के केंद्र को उस लेंस का वक्त केंद्र कहते है | 
  • किसी लेंस , दर्पण के मुख्य फोकस और प्रकाशिक केंद्र ध्रुव के बीच की दूरी ‘फोकस दूरी ‘ कहलाती है जब प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती है तो अपने पथ से विचलित हो जाती है | किरणों का पथ से विचलित होना प्रकाश का अपवर्तन कहलाता है | 
  • वह यंत्र जो छोटी वस्तु को काफी बड़ा करके देखता है उसे सूक्ष्मदर्शी यंत्र कहते है | 
  • दूर की वस्तु को स्पष्ट दिखने वाले यंत्र  को दूरदर्शी कहते है | 
  • लेंस का सूत्र है 1/v – 1/u = 1/f   [ जहाँ v = लेंस के प्रतिबिंब की दूरी , u = बिम्ब दुरी और f = फोकस  दूरी ]
  • अपवर्तन का नियम :-

  • किन्ही दो माध्यम के लिए आपतन कोण   और अपवर्तन कोण की ज्या ( sine ) का अनुपात स्थित होता है | 
  • आपतित किरणों , अपवर्तित किरणों और अभिलम्ब एक ही एक तल में होते है | 
  • गोलीय दर्पण का आवर्धन (m) = -v/u यदि प्रतिबिंब वास्तविक हो तो (-m ) तथा काल्पनिक हो तो (+m ) | 
  • सभी प्रकार के परिवर्तन पृष्ठ परावर्तन के नियम का पालन करते है | 
  •   गोलीय दर्पण तथा लेंस के लिए नई कार्तीय चिन्ह परिपाटी अपनाई जाती है | 

मानव नेत्र एवं रंग -बिरंगा संसार 

Human Eye and Colourful World 

  • नेत्र (Eye ) की रचना एक कैमरे की तरह है | उसमे उल्टा , छोटा और वास्तविक प्रतिबिम्ब बनता है | 
  • आँख में प्रतिबिंब रेटिना पर बनता है 
  • नेत्र गोलक लगभग 2 -3 सेमी व्यास का एक गोला है | कनिया और एक्स हुमर प्रकाश की किरणों का अपवर्तन करते है 
  • क्रिस्टलीय लेंस बिम्ब बनाने में सहायता होती है | 
  • रेटिना अति संवेदनशील झिल्ली है जिस पर असंख्य प्रकाश संवेदी कोशिकाएं होती है | 
  • आँख में बहुत निकट की वस्तु का रेटिना पर प्रतिबिम्ब नहीं बन पता जिस कारण वह धुंधला दिखाई पड़ता है | 
  • पढ़ने के  लिए आँख को पिष्ठ से लगभग 25 सेमी की दुरी पर रखा जाना चाहिए 
  • लगभग 60 वर्ष की आयु में निकट दृष्टि बिंदु लगभग 200 सेमी हो जाता है | इसलिए इस आयु वर्ग वर्गों में विभाजन प्रकाश का वर्ण विक्षेपण कहलाती है 
  •  विभेदन सीमा के प्रतिलोम को सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता कहते है 
  •  दूर दृष्टि दोष में नजदीक की वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना के बाहर बनाता  है |इसलिए इस दोष के उपचार हेतु उत्तल लेंस का प्रयोग किया जाता है 
  • निकट दृष्टि दोष में दूर वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना के आगे बनता है | इसके निराकरण के लिए अवतल लेंस का प्रयोग किया जाता है जिससे प्रतिबिंब रेटिना पर बनने लगता है | 
  • नेत्र की वह क्षमता जिसके कारण लेंस , की फोकस दूरी को समायोजित करने निकट तथा दूरस्थ वस्तुओं को फोकसित कर लेता है , नेत्र समंजन क्षमता कहलाती है | 

विद्युत ( Electricity )

  • आवेश का मात्रक कूलाम है | एक कूलाम आवेश के लिए 6.25 x 10 18  इलेक्ट्रॉन की आवश्यकता होती है | 
  • एक मात्रक धन आवेश को अनंत से किसी बिंदु तक लाने  में किये गए कार्य की मात्रा को उस बिंदु पर विभव कहते है | 
  •  चालक के छोरो के बीच का विभवान्तर वह विधुतीय कारक है जो चालक के भीतर इलेक्ट्रॉन को निम्न विभव से उच्च विभव की ओर अग्रसर होने को बाध्य करता है | इस विधुतीय कारकों को विद्युत वाहक बल -कहते है | 
  • इकाई आवेश को , एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किए गए कार्य की मात्रा को , उन बिंदुओं के बीच का विभवांतर कहते है | 
  • जब दो बिंदुओं के बीच में एक कूलाम आवेश प्रवाहित होने से एक जूल ऊर्जा उत्पन्न हो तो इन दोनों बिंदुओं का बीच का विभवांतर एक वोल्ट होता है |  1 वोल्ट = 1  जूल /1 कुलाम |
  • विधुतीय आवेश के बहने की देर को विद्युत धारा कहते है | धारा का परिमाण परिपथ में प्रति सेकंड गुजरता वाले आवेश की मात्रा है |  धारा = 1 आवेश / 1 कुलाँम
  • विद्युत आवेश के बहने की दर को विद्युत धारा कहते है | धारा का परिमाण परिपथ में प्रति सेकेण्ड गुजरने वाले आवेश की मात्रा है |  धारा = आवेश/ समय |
  • धारा की इकाई एम्पीयर है | 
  • यदि परिपथ में एक सेकेण्ड में कूलाम आवेश बहे तो परिपथ में धारा एक एम्पियर होगी | 
  • किसी चालक का प्रतिरोध के सिरों का विभवान्तर V तथा इसमें से प्रवाहित धारा I का अनुपात है , R =V/ I   प्रतिरोध की इकाई ओम है | 
  • चालक का प्रतिरोध एक ओम तब होता है जबकि इसमें एक एम्पियर धारा प्रवाहित हो तथा इसके सिरों के मध्य का विभवांतर एक वोल्ट हो | 
  • विधुतीय शक्ति का मात्रक वाट है जो एक वोल्ट विभवान्तर पर एक एम्पियर धारा प्रवाहित  करने  बरबरा होता है |  वाट = वोल्ट X एमिपयर | 
  • विधुत परिपथ में इकाई समयावधि में किए गए कार्य , अथार्थ इकाई समय में उपयुक्त ऊर्जा को  हम विधुत शक्ति कहते है |  एक किलोवाट घंटा ( Kwh ) को एक यूनिट विद्युत ऊर्जा कहते है | 1 किलोवाट – घंटा =1000  वाट – घंटा होता है | 
  • बल्ब के अंदर का चालक तार इतना गर्म हो  जाता है कि उसमे प्रकाश निकलने लगता है अतः उसे  तापदीप्त  लैम्प कहते है | 
  • किसी विद्युत परिपथ में क्रम परिपथ से होकर धारा के प्रवाहित होने को शर्ट शर्किट कहते है | 
  • विधुत शक्ति P का सूत्र इस प्रकार लिखा जाता है |  P = W/t =I2 Rt/t =I 2 R = V 2/R यहाँ शक्ति P का मात्रक वाट है |
  • विधुत धारा I का मात्रक एंपियर प्रतिरोध R ओम और विभव V का मात्रक वोल्ट है | 
  • 1000 वाट = 1 किलो वाट , 746 वाट = 1 हॉर्स पॉवर | 
  • 1 Kwh =36,00,000  जुल 
  • ताप विद्युत प्रभाव तीन प्रकार के होते है | (1) सिबेक  प्रभाव  (2) पैली पर प्रभाव तथा (3) थॉमसन प्रभाव 
  • विधुत अपघटन में विद्युत प्रवाह प्रक्रम को विधुत अपघटन कहते है | 
  • किसी प्रतिरोध में क्षयित अथवा उपयुक्त ऊर्जा को विधुत अपघटन कहते है | 
  • किसी प्रतिरोध में क्षयित अथवा उपयुक्त ऊर्जा को इस प्रकार व्यक्त किया जाता है W =V x I x t 

विधुत धारा के चुंबकीय प्रभाव ( magnetic Effect Of Electric Current )

  • परिनालिका :- यदि किसी तार को लपेट कर कुंडली बना दी जाए तो उसे परिनालिका कहते है | 
  • चुंबकीय क्षेत्र :- चुंबक के चारों ओर का वह क्षेत्र जहाँ तक चुंबकीय प्रभाव डालता है , उसे चुंबकीय क्षेत्र कहते है | 
  • दृष्टि धारा :- वह धारा जिस की दिशा सदा एक ही दिशा में रहती है | 
  • प्रत्यावर्ती धारा :- वह धारा जिस की दिशा सदा बदलती रहती है | 
  • टांसफार्मर :- विधुत की वोल्ट को बढ़ाने घटाने वाले उपकरण को टांसफार्मर कहते है | 
  • विद्युत जनित्र :- विद्युत धारा उत्पन्न करने वाले उपकरण को विधुत जनित्र कहते है | 
  • विधुत शक्ति :- किसी चालक में विद्युत ऊर्जा के व्यय होने की को विधुत शक्ति कहते है | 
  • विद्युत ऊर्जा :- विद्युत धारा द्वारा किसी कार्य करने की क्षमता को विधुत ऊर्जा कहते है | 
  • विद्युत चुंबकीय प्रेरण :- चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन के द्वारा इनमे संबंध कुंडली में आवेश की उत्पत्ति को विद्युत प्रेरण कहते है| 
  • स्नो का नियम :- जब चुंबकीय सुई के ऊपर स्थिर तार से दक्षिण से उत्तर की ओर आवेश  गुजर जाता है तो उसका सिरा पश्चिम की और घूम जाता है | 
  • फुव्ज :- कम गलनांक वाला तार फुव्ज कहलाता है जिसे किसी विद्युत परिपथ में लगाया जाता  है | 
  • भूसंपकित – उच्च शक्ति वाले विधुत उपकरणों के धातित्वक फ्रेम को घरेलू परिपथ की भू – तार से जुडना भूसंपकरित  कहलाता है | 
  • लघुपथन :- जब विधुत ले जाने वाली और उदासीन तार पर आपसी संबंध होने से अत्यधिक धारा प्रवाहित होने लगती है , उसे  लघुपथन कहते है | 
  • विद्युत मीटर :- यह वह यंत्र जिसके द्वारा विद्युत परिपथ होने वाली विद्युत ऊर्जा मापी जाती है | 
  • फ्लेमिंग का बायें हाथ का नियम :- बाएं हाथ की तर्जनी , मध्यम और अंगूठे को आपस में इस प्रकार हम फैलाई की तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा तथा मध्यम विधुत धारा की दिशा को प्रकट करे तो चालक की गति दिशा में होगी | 
  • अपचायी क्रिया :- अधिक वोल्टता की  प्रत्यावर्ती धारा के क्रम कम वोल्टता की प्रत्यावर्ती धारा में बदलना अपचायी क्रिया कहलाता है | 
  • विधुत शार्क – शरीर के किसी भाग के विधुत परिपथ के उच्च विभवान्तर वाले किसी बिंदु से छूने पर लगाने वाले झटके को विधुत शार्क कहते है | 
  • अतिभरण – यदि किसी परिपथ से निर्धरित सिमा से अधिक विधुत धारा प्रवाहित की जाए तो तार के अधिक गर्म होने से उसमे  आग पकड़ सकती है जिसे अतिभरण कहते है | 

ऊर्जा के स्रोत ( Sources of Energy )

  • ऊर्जा ( Energy ) – कार्य करने की क्षमता को  ऊर्जा  कहते है | 
  • गतिज ऊर्जा ( Kinetic Energy ) – वस्तुओं में उनकी गति के कारण कार्य करने की क्षमता को गतिज ऊर्जा कहते है , जैसे गतिशील वायु , गतिशील जल यदि | 

  •  स्थितिज ऊर्जा ( Potential Energy ) – किसी वस्तु की स्थिति   के कारन कार्य करने की क्षमता स्थतिज ऊर्जा कहते है।  जैसे – खींचा हुआ तीर  कमान , पहाड़ो पर परी बर्फ अदि | 
  • ऊर्जा संरक्षण नियम ( Law of Conservation of Energy ) – ऊर्जा को बढ़ाया या मिटाया नहीं जा सकता , उसे केवल दूसरे रूप में बदला जा  सकता है | 

  • इंजन ( Engine ) – यह उपकरण जिसके  द्वारा ऊष्मीय ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदला जाता है | 

  • सौर ऊर्जा ( Solar Energy ) सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा | 

  • पवन ऊर्जा ( Wind Energy ) – वायु के विशाल द्रव्यमान की गतिशीलता से संबद्ध गतिज ऊर्जा को पवन ऊर्जा कहते है | 

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